सरदार वल्लभभाई पटेल: भारत को एक सूत्र में पिरोनेवाले लोह पुरुष
आज हम एक ऐसे महान व्यक्ति के विषय में बात करने वाले हैं जिन्होंने हमारे देश को एकजुट किया और हमारे राष्ट्र के अस्तित्व को विश्व में बचा कर रखा।
15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने हमारे देश को आजाद तो किया, परंतु भारत से एक अलग राष्ट्र पाकिस्तान का भी निर्माण करके चले गए। इसके साथ ही भारत 562 अलग-अलग देसी रियासतों में बांटा हुआ था। इन रियासतों को यह विकल्प दिया गया था कि वे चाहे तो भारत में विलय हो जाए या अपना स्वतंत्र राष्ट्र बना लें। इससे सभी राजाओं में अपना स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की मंशा ने जन्म लिया। यह एक बहुत बड़ी समस्या थी और इससे हमारे भारतवर्ष का अस्तित्व खतरे में हो सकता था। इस दौर में भारत के इन 562 देसी रियासतों को एक सूत्र में बांधकर एकीकरण करने का कार्य एक व्यक्ति को दिया गया जिसे उन्होंने बहुत अच्छे से पूरा किया और हमारे राष्ट्र को एक किया। वह महान व्यक्ति हैं लोह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल। आज हम जानने वाले हैं उनके जीवन के विषय में।
सरदार वल्लभभाई पटेलसरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1975 में नाडियाड ,गुजरात में हुआ था। उनका पूरा नाम वल्लभभाई झवेरभाई पटेल था। उनके पिता झवेरभाई पटेल एक सच्चे, ईमानदार और सख्त अनुशासन वाले किसान और माता लाडबाई ममता और धार्मिकता की मूर्ति थी। उनकी शुरुआती पढ़ाई गांव के छोटे स्कूल हुई। वह बचपन से ही आत्मनिर्भर और साहसी लड़के थे। एक बार उनके हाथ में एक फोड़ा हो जाता है। उनका वह फोड़ा पूरी तरह से पस से भरा हुआ होता है। जब डॉक्टर वह फोड़ा देखते हैं तो कहते हैं कि इसे तो गर्म लोहे से फोड़ना होगा। जब डॉक्टर आग से तपी गर्म लोहा लाकर फोड़ने जाता है, तो उसके भी हाथ कांपने लगा जाते हैं। तभी सरदार पटेल उस लोहे को ले लेते हैं और अपने हाथों से उस फोड़े को फोड़ देते हैं। वह पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी बहुत अच्छे थे। 1893 में 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह झवेरबा पटेल से कर दिया गया। कम आयु में विवाह होने के कारण ही उन्होंने 22 वर्ष की आयु दसवीं कक्षा पास किया। वे वकालत का पढ़ाई करना चहते थे, परंतु अपनी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उन्होंने कानून का पढ़ाई करने से मना कर देते हैं। कुछ समय बाद वे घर छोड़कर अपनी पत्नी के साथ गोधरा चले जाते हैं। 1909 में उनकी पत्नी का कैंसर होने से मृत्यु हो जाती है जिससे उन्हें बहुत ही गहरा धक्का लगता है। सरदार पटेल अपने बैरिस्टर बनने के सपने के लिए कई वर्षों तक अपने परिवार से दूर रहे और पढ़ाई करने के अपने दोस्तों से किताबें उधार लेते। इन सब परेशानियों के बावजूद उन्होंने 36 वर्ष की आयु में Middle Temple Inn of Court,London,England से 36 वर्ष के बैरिस्टर के कोर्स को केवल 30 में पूरा किया। अपना डिग्री प्राप्त करने के बाद वह गोधरा में बैरिस्टर के रूप में प्रैक्टिस करते हैं और जल्द ही उनकी प्रैक्टिस भी पूरी हो जाती है। इसके बाद उन्हें एक बीमारी संक्रमण बीमारी का सामना करना पड़ता है। जब वह इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई कर रहे होते हैं, तो उन्हें अंग्रेजी जीवन शैली बहुत प्रभावित करता है। इंग्लैंड से भारत आने के बाद उनका जीवन शैली पूरी तरह बदल जाता है। वे अंग्रेजी में बात करने के साथ-साथ सूट और टाइ पहनना भी शुरू कर देते हैं। उस समय वे अहमदाबाद के प्रसिद्ध वकीलों में से एक बन जाते हैं और आपराधिक मामलों को जीतने के लिए प्रसिद्ध हो जाते हैं।
सरदार पटेल का शुरू में राजनीति में कोई रुचि नहीं होता है। वे अपने मित्रों के आग्रह करने पर 1917 में नगरपालिका का चुनाव लड़ते हैं और जीत हासिल करते हैं। शुरुआत में सरदार पटेल गांधी जी के विचारों को पसंद नहीं करते हैं, परंतु जब गांधी जी ने नील क्रांति को शुरू किया, तो वे उनसे बहुत प्रभावित हुए।
1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में सूखा पड़ जाता है और खेती नहीं हो पाती। किसान अंग्रेजों से भारी छूट की मांग करते हैं, परंतु अंग्रेज सरकार उनके मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं होती है। तब वल्लभभाई पटेल किसानों को एकत्रित कर उनका नेतृत्व करते हैं और अहिंसात्मक खेड़ा आंदोलन का संचालन करते हैं। इस आंदोलन का परिणाम यह हुआ कि अंग्रेज सरकार को उनके आगे झुकना पड़ा और करो में छूट देना पड़ा। यह वल्लभ भाई पटेल की पहली जन आंदोलन सफलता थी। 1928 में बारडोली में इसी तरह सूखा पड़ता है और अंग्रेज 22% तक कर बढ़ा देते हैं। बारडोली के किसानों को भी सरदार पटेल का सहारा मिलता है। वे इसके आंदोलन का भी सफलतापूर्वक संचालन करते हैं। वे किसानों के साथ मिलकर सत्याग्रह करते हैं। अंग्रेज सरकार को उनके आगे विवश होना पड़ता है और किसनों को करों से मुक्त करना पड़ता है। इस आंदोलन के कारण अंग्रेज सरकार को किसानों हथियाए जमीन और जानवरों को वापस करना पड़ता है। इस आंदोलन से ही वल्लभभाई पटेल को सरदार के नाम से सम्मानित किया जाता है इसके बाद उन्हें सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम से जाना जाता है। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को शुरू किया, तब सरदार पटेल गांधी जी को संपूर्ण समर्थन करते हैं। वे अपने सभी अंग्रेज शैली के कपड़ों को फेंक देते हैं और खादी के वस्त्रों का प्रयोग करना शुरू कर देते हैं। 1920 में उन्हें गुजरात में कांग्रेस के अध्यक्ष रूप में चुना जाता है। वे 3 बार 1922, 1924 और 1927 में इस पद के लिए चुने जाते हैं और इस पद को 1945 तक संभालते हैं। 1940 के आस-पास भारत में आजादी की गतिविधियां तेजी से बढ़ने लगती है और अन्य क्रांतिकारियों के साथ सरदार वल्लभभाई पटेल को भी कई बार जेल जाना पड़ता है। लेकिन आजादी का संघर्ष चलता रहा और परिणाम स्वरूप 15 अगस्त 1947 में अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ता है। वे आजादी के बाद पहले गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री बनते हैं। उसे समय भारत आजाद तो हो गया था, परंतु समस्याएं कम नहीं थी। भारत अलग-अलग 562 देसी रियासतों में बंटा हुआ था। सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से सभी रियासतें भारत में शामिल हो जाते हैं और भारत को एक सूत्र में पिरोते हैं। वह भारत को एकजुट कर हमारे भारत के अस्तित्व को बचा लेते हैं। हमारे भारत देश को जीवन भर सेवा देने के बाद 15 दिसंबर 1950 को हार्ट अटैक से उनका मृत्यु हो जाता है। आज उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2018 में उन्ही के सम्मान में उनकी 182 मीटर ऊंची प्रतिमा बनाई जाती है। यह विश्व में सबसे ऊंची मर्ति है। वे आज हमारे देश के सभी लोगों के लिए बहुत बड़े प्रेरणा है।.jpg)


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